माता वैष्णो देवी मंदिर जम्मू के कटरा से लगभग 18 किमी. की दूरी पर त्रिकुटा पर्वत पर स्थित है। माता वैष्णो देवी मंदिर भारत के सबसे पवित्र और प्रसिद्ध हिंदू मंदिरों में से एक है। यहां पर माता वैष्णो देवी की पूजा तीन पिंण्डों के रूप में की जाती है, जिसमें बाईं ओर, दाईं ओर एवं मध्य में विराजित हैं। माता वैष्णो देवी के मंदिर का इतिहास करीब 700 वर्षों से भी पुराना माना जाता है, जहां पर हर साल लाखों की संख्या में देश-विदेश से तीर्थयात्री और पर्यटक आते हैं।
माता वैष्णो देवी मंदिर का इतिहास | History Of Vaishno Devi Temple In Hindi.
पौराणिक कथाओं के अनुसार माता वैष्णो देवी का यह उनके परम भक्त श्रीधर से जुड़ा हुआ है। यह घटना करीब 700 वर्षों से भी पुराना है। कटरा से कुछ ही दूरी पर स्थित एक हंसाली गांव था, जहां पर माता वैष्णवी के एक अनन्य भक्त श्रीधर रहते थे। वे नि:संतान और गरीब थे, इसलिए उनके ऊपर गांव वाले हमेशा ताना मारते रहते थे। गरीबी से बेहाल श्रीधर हमेशा सोंचते रहते थे कि वे एक दिन माता का भंडारा रख सकें।
एक दिन श्रीधर ने अपने घर भंडारे का आयोजन रखा, जिसमें उन्होंने हंसाली गांव सहित आस पास के गांव में भी लोगों को माता रानी के प्रसाद खाने का न्योता दिया। उनके घर सभी लोगों को खाना खिलाने की सामग्री ना होने की वजह से उन्होंने भंडारे से 2-3 दिन पहले गांव वालों से के कुछ न कुछ सामग्री सामग्री देने का अनुरोध किया, ताकि वे भंडारे के दिन लोगों को खाना बनाकर खिला सकें। फिर भी उतने सामग्री का इंतजाम ना हो सका, जितने मेहमान आने वाले थे। इसलिए श्रीधर इसी सोंच में डूबे हुए थे कि वे भंडारे के दिन लोगों को खाना कैसे खिला सकेंगे।
भंडारे के दिन श्रीधर और उनकी पत्नी पूजा तो बैठ गए, लेकिन श्रीधर का ध्यान खाना खिलाने पर ही था। इसलिए उन्होंने सबकुछ माता रानी के ऊपर ही उम्मीद लगाए पूजा पर बैठे थे कि अब इस समस्या से उनको सिर्फ माता रानी ही निकल सकती हैं। धीरे-धीरे सभी लोग श्रीधर के घर आने लगे और उनको जहां पर भी बैठने का जगह मिला, वे वहीं पर खाना खाने के लिए बैठ गए। श्रीधर का कुटिया इतना बड़ा था कि सभी लोग आसानी से उस कुटिया में बैठ गए।
पूजा खत्म होने के बाद श्रीधर ने लोगों को खाना खिलाने के बारे में सोंचा। तब तक उनको एक कुआंरी कन्या कुटिया से बाहर निकल कर लोगों को खाना खिलाते दिखी। वह कन्या असल में माता वैष्णो देवी ही थीं, जो कन्या का वेश बदलकर श्रीधर को इस समस्या से छुटकारा दिलाने आई थीं। श्रीधर के बुलावा देने पर भैरवनाथ भी खाना खाने के लिए आया था। उसने खीर पूड़ी खाने से इंकार कर दिया और उसने उस कन्या से मांसाहारी भोजन के साथ-साथ मदिरा पान की मांग की।
कुछ देर बाद सभी गांव वाले लोग खीर पूड़ी खाने के बाद अपने-अपने घर की ओर प्रस्थान कर गए, लेकिन भैरवनाथ वहीं पर जिद पकड़े बैठा था। फिर उस कन्या ने भैरवनाथ को समझाया कि यह एक ब्राह्मण का कुटिया है, जहां पर मांसाहारी चीजों को लाने तक की भी अनुमति नहीं दी जाती है। लेकिन फिर भी भैरवनाथ अपने जगह से हिल ना सका। वह कन्या भैरवनाथ की छल कपट को समझ गई और वहां से तुरंत गायब हो गई। इतना देखते ही भैरवनाथ भी बिना प्रसाद ग्रहण किए उस कन्या का पीछा करते हुए वहां से तुरंत निकल पड़ा।
कहा जाता है कि उस कन्या की रक्षा करने के लिए वहां हनुमान जी आ पहुंचे और वह कन्या अपने वेश में आकर त्रिकुट पर्वत के गुफा में प्रवेश कर गईं। कुछ देर बाद वहां भैरवनाथ को कहीं पर भी वह कन्या न दिखी, तो वह वहां से चला गया। हनुमान जी को प्यास लगी थी, इसलिए उन्होंने माता के गुफा से बाहर निकलने के बाद उनसे पानी पीने का आग्रह किया। तभी माता वैष्णो देवी ने धनुष से पहाड़ पर प्रहार किया और प्रहार करते ही वहां से पानी का धारा उत्पन्न हो गया, जिससे माता वैष्णवी ने अपना केश (बाल) भी धोया था। इसके बाद माता वैष्णवी ने 9 माह तक इस गुफा के अंदर तपस्या की थीं और हनुमान जी वहां पहरेदार बनकर उनकी रक्षा किए थे।। वर्तमान में इस जलधारा को बाढ़ गंगा के नाम से जाना जाता है।
एक बार दोबारा भैरवनाथ इस गुफा के पास आ पहुंचा और गुफा के अंदर प्रवेश करने की कोशिश की। लेकिन वहां उपस्थित हनुमान जी ने भैरवनाथ को रोके। फिर क्या था भैरवनाथ के ना रुकने पर हनुमान जी और भैरवनाथ में युद्ध शुरू हो गया और यह युद्ध इतना देर तक भयंकर रूप धारण कर लिया कि खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था। यह सबकुछ देखने के बाद माता वैष्णवी गुफा से बाहर आईं और भैरवनाथ का सिर काट दिया, जो इस गुफा से 3 किमी. दूर जाकर भैरवी घाटी में जा गिरा, जहां पर वर्तमान समय में भैरवनाथ का मंदिर स्थापित किया गया है।
माता वैष्णवी ने जिस जगह पर भैरवनाथ का वध किया था उस स्थान को ‘भवन’ के नाम से जाना जाता है। इस स्थान पर एक चट्टान के ऊपर देवी काली दाईं ओर, माता सरस्वती बाईं ओर और माता लक्ष्मी मध्य में पिण्डी के रूप में गुफा में विराजमान हैं। इन तीनों पिण्डियों के सम्मिलित रूप को वैष्णो देवी का रूप माना जाता है।
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माता वैष्णो देवी मंदिर की खोज कैसे और किसने की थी ?
पौराणिक कथाओं के अनुसार इस मंदिर की खोज 700 वर्षों से भी पूर्व का माना जाता है। कहानी कुछ ऐसी है कि हंसाली गांव में निवास करने वाला पंडित श्रीधर, जो कि माता वैष्णो देवी का परम भक्त था, ने एक स्वप्न देखा, जिसमें उसे किसी गुफा में तीन पिण्डी देखने को मिला।
अगले दिन सुबह होते ही वह उस सपने में दिखे गुफा की ओर निकल पड़ा और अंततः श्रीधर उस गुफा के पास पहुंच गया, जो उसने सपने में देखा था। गुफा के अंदर उसे तीन पिण्डी भी दिखाई दिया, जिसे माता का रूप मानकर उसने पूजा अर्चना करनी शुरू कर दी। श्रीधर के भक्ति से प्रसन्न होकर माता वैष्णो देवी उनके सामने प्रकट हुईं और उसे आशीर्वाद दिया। कुछ समय के बाद माता वैष्णो देवी के आशीर्वाद से नि:संतान श्रीधर चार बच्चों का पिता बन गया और तभी से श्रीधर के वंशज माता वैष्णो देवी की पूजा अर्चना करते आ रहे हैं।
इसके बाद से ही माता वैष्णो देवी के दर्शन करने के लिए हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु और पर्यटक यहां आते रहते हैं। साल 2020 और 2021 में कोरोना की वजह से यहां पर श्रद्धालु दर्शन करने नहीं पहुंच पा रहे हैं, इसलिए इस समय यहां पर काफी कम मात्रा में भीड़ देखने को मिल रही है।
माता वैष्णो देवी मंदिर कहां स्थित है ?
माता वैष्णो देवी मंदिर भारत के जम्मू और कश्मीर के जम्मू के कटरा से लगभग 18 किमी. की दूरी पर त्रिकुटा पर्वत पर स्थित है।
माता वैष्णो देवी का अन्य नाम –
वैष्णो देवी मंदिर भारत ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व में माता वैष्णो देवी के नाम से प्रसिद्ध है, लेकिन माता वैष्णो देवी को के नाम से भी जाना जाता है।
माता वैष्णो देवी के आरती का समय –
वैष्णो देवी मंदिर को प्रतिदिन आरती की तैयारी करने के लिए सुबह और शाम 6 बजे बंद कर दिया जाता है, ताकि कोई भी तीर्थयात्री माता के दर्शन ना कर पाए और आरती में किसी भी तरह का कोई विघ्न उत्पन्न ना हो। आरती सुबह और शाम 6:20 बजे शुरू होती है, जो 8 बजे तक नियमित रूप से होती है। 8 बजे आरती खत्म होने के बाद पुनः मंदिर को आधे घण्टे के लिए बंद किया जाता है, ताकि मंदिर की साफ-सफाई अच्छी तरह से हो सके। आधे घण्टे बाद पुनः मंदिर को खोला जाता है, ताकि सभी तीर्थयात्री माता वैष्णो देवी का दर्शन कर सकें।
माता वैष्णो देवी मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय – Best Time to visit Vaishno Devi Temple in Hindi
वैसे तो वैष्णो देवी मंदिर में सालो भर तीर्थयात्री और पर्यटक देखे जाते हैं, लेकिन यहां पर सबसे ज्यादा भीड़ मार्च से जून तक होती है, क्योंकि इस समय स्कूल के बच्चों की छुट्टियां भी होती है, जिसकी वजह से यहां पर बहुत सारे लोग अपने फैमिली के साथ भी आते हैं। अगर आप जुलाई से सितंबर के बीच वैष्णो देवी मंदिर जाते हैं, तो आप कम खर्च में ही माता वैष्णो देवी की यात्रा पूरा कर सकते हैं। वैष्णो देवी मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय नवंबर से फरवरी का होता है, क्योंकि इस समय में अधिक भीड़ भी नहीं होती है और बारिश की संभावना भी बहुत कम होती है, जिसकी वजह से इस समय में माता वैष्णो देवी की यात्रा करना काफी आसान हो जाता है।
क्या माता वैष्णो देवी की यात्रा करनेके लिए रजिस्ट्रेशन करवाना पड़ता है ?
हां, माता वैष्णो देवी का दर्शन करने के लिए रजिस्ट्रेशन करवाना पड़ता है, जिसे यात्रा पर्ची कहा जाता है। यात्रा पर्ची को आप कटरा रेलवे स्टेशन और बस स्टेशन के बगल में बने काउंटर से ले सकते हैं। यात्रा पर्ची बनवाने के लिए आपके पास एक आईडी कार्ड (आधार कार्ड, वोटर कार्ड, पैन कार्ड आदि) जरूर होना चाहिए। यात्रा पर्ची निःशुल्क उपलब्ध कराई जाती है, जो माता वैष्णो देवी के दर्शन करने के लिए होता है।
दिल्ली से माता वैष्णो देवी मंदिर कैसे जाएं ?
हवाई जहाज से वैष्णो देवी मंदिर जाने के दिल्ली से पठानकोट तक फ्लाइट की सुविधा उपलब्ध है, जहां से आप बस पकड़कर कटरा पहुंच सकते हैं। ट्रेन से वैष्णो देवी मंदिर जाने के लिए आप दिल्ली से ट्रेन द्वारा कटरा आसानी से पहुंच सकते हैं और दिल्ली से सीधा कटरा जाने के लिए बस की सुविधा भी उपलब्ध होती है। कटरा माता वैष्णो देवी मंदिर का सबसे नजदीकी शहर है, जहां से यात्रा पर्ची लेकर आप टैक्सी द्वारा बाणगंगा या ताराकोट जा सकते हैं और वहां से पैदल ट्रेक करके माता वैष्णो देवी मंदिर आसानी से पहुंच सकते हैं, जो करीब 12-14 किमी. का पैदल ट्रेक होता है।
मुझे उम्मीद है कि यह जानकारी आपको अच्छी लगी होगी। अगर इस पोस्ट से संबंधित आपका कोई सवाल हो, तो आप हमें कमेंट बॉक्स में पूछ सकते हैं। मैं आपको जवाब देने की कोशिश जरूर करूंगा।
धन्यवाद !
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