नमस्कार दोस्तों, आज हम इस ब्लॉग के माध्यम से लद्दाख के एक ऐसे गांव के बारे में बात करने वाले हैं, जो पहले कभी पाकिस्तान में हुआ करता था, लेकिन 1971 के भारत-पाक युद्ध के बाद उस गांव पर हिंदुस्तान ने कब्जा कर लिया। पहले इस गांव में टूरिस्टों की संख्या न के बराबर घूमने के लिए जाती थी, लेकिन आज के समय में यह गांव लद्दाख जाने वाले लगभग 90% टूरिस्टों की पहली पसंद होती है। तो चलिए जानते हैं इस गांव की खूबसूरती के बारे में कि आखिर क्या है इस गांव में की यह गांव लद्दाख जाने वाले टूरिस्टों को अपनी ओर आकर्षित करती है।
सबसे पहले तो आप यह जान लीजिए कि लद्दाख के जिस गाँव की चर्चा मैं यहां पर करने वाला हूं, उस गांव का नाम तुरतुक है। आइए अब जानते हैं लद्दाख का एक खूबसूरत गांव तुरतुक गांंव के बारे में-
तुरतुक गांव के बारे में संपूर्ण जानकारी :- About Turtuk Village Ladakh In Hindi.
तुरतुक भारत के केंद्र शासित राज्य लद्दाख के लेह जिले में बसा हुआ छोटा-सा और बहुत ही खूबसूरत गांव है। तुरतुक तीन भागों यूल, फरोल और जुदांग में बटा हुआ है, जहां पर अधिकतर मुस्लिम लोग निवास करते हैं। तुरतुक गांव में चार भाषाएं हिंदी उर्दू, बाल्ती और लद्दाखी बोली जाती है एवं इस गांव का मुख्य फसल जौ है।
इस गांव के किनारे से ही श्योक नदी निकलती है, जो इस गांव की खूबसूरती में चार चांद लगाते हुए गिलगिट बाल्तिस्तान में चली जाती है (जिस पर पाकिस्तान ने कब्जा किया है) और वहां पर जाने के बाद यह नदी सिंधु नदी में विलय हो जाती है।
तुरतुक गांव के इतिहास के बारे में सम्पूर्ण जनकारी – History Of Turtuk Village Ladakh In Hindi.
1947 में भारत-पाक बंटवारे के समय तुरतुक सहित अन्य तीन गांव थांग, त्याक्षी और चुलुंका पाकिस्तान के बाल्तिस्तान क्षेत्र में आता था, लेकिन 1971 में भारत-पाक युद्ध होने के बाद इन चार गावों पर भारत ने कब्जा कर लिया।
1971 के युद्ध से पहले इस गांव के बहुत सारे लोग पाकिस्तान के दूसरे इलाके में पढ़ाई और रोजगार कर रहे थे, लेकिन जब 1971 का युद्ध हुआ, तो ये चारों गांव भारत का हिस्सा बन गया और वे लोग, जो पढ़ाई और रोजगार करने के लिए पाकिस्तान के दूसरे शहर में गए थे, वहीं पर रह गए। इसी तरह से इस गांव के कुछ परिवारों के कुछ सदस्य हिंदुस्तान में और कुछ सदस्य पाकिस्तान में बंट गए।
तुरतुक गांव की खूबसूरती का क्या राज है?
तुरतुक एक ऐसा गांव है, जहां मोनेस्ट्री, मंदिर और मस्जिद इन तीनों धर्मों के पूजनीय स्थान मौजूद है। यानी कह सकते हैं कि तिब्बत, भारत और पाकिस्तान को एक साथ जोड़ने पर कोई एक ऐसा जगह है तो वह है तुरतुक, जहां बौद्ध, हिंदू और मुश्किल धर्म के लोग निवास करते हैं।
इस गांव की खूबसूरती की जितनी भी प्रशंसा की जाए, वो कम ही है। इस गांव के चारों ओर पहाड़ों के ऊपर हरियाली, खेतों में जौ की फसलें, चारों तरफ पेड़-पौधे और बगल से निकलती हुई श्योक नदी इस गांव की खूबसूरती को और भी बढ़ा देते हैं। तुरतुक जाने के बाद यह खूबसूरती हमेशा के लिए आपकी यादों में बस जाएगी। यही कारण है कि इस गांव की खूबसूरती लद्दाख जाने वाले लगभग 90% टूरिस्टों को अपनी ओर आकर्षित करती है।
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तुरतुक में घूमने लायक जगह कौन-कौन सी है?
मैं इस बात को स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि तुरतुक गांव में घूमने लायक कोई भी पर्यटन स्थल नहीं है, इसलिए अगर आप किसी पर्यटन स्थल को विजिट करने के लिए तुरतुक गांव को विजिट करना चाहते हैं, तो यह जगह आपके लिए नहीं है, क्योंकि तुरतुक गांव में एक भी पर्यटन स्थल नहीं है।
अगर आप तुरतुक गांव के प्राकृतिक सौंदर्य और वातावरण को देखना चाहते हैं एवं वहां के लोगों के रहन-सहन बोल-चाल की भाषा वगैरह के बारे में जानना चाहते हैं, तो आपको इस गांव में जरूर जाना चाहिए। वहां के लोगों से बातचीत करनेे और उनके जीवन के बारे में जानने के बाद आपको एक अलग ही अनुभव होगा।
क्या हम तुरतुक गांव में घूमने के लिए जा सकते हैं ?
हां बिल्कुल, इन चारों गांव में पहले टूरिस्टों को जाने की अनुमति नहीं दी जाती थी, लेकिन कुछ ही साल पहले चुलुंका, तुरतुक और त्याक्षी में पर्यटकों को जाने की अनुमति दे दी गई थी एवं अभी हाल ही में थांग में भी टूरिस्टों को जाने की अनुमति दी जा रही हैै, जो भारत का सबसे अंतिम उत्तरी गांव हैै। यानी कहा जाए तो बाल्तिस्तान क्षेत्र के इन चारों गाँवों में आप घूमने के लिए जा सकते हैं।
क्या तुरतुक गांव में जाने के लिए अलग से परमिट बनवानी पड़ती है ?
नहीं, अगर आप तुरतुक ही नहीं बल्कि थांग, त्याक्षी और चुलुंका में भी जाते हैं, तो आपको अलग से परमिट नहीं बनवानी पड़ेगी। आपके पास जो लद्दाख का परमिट (ILP) है, उसी परमिट को लेकर आप इन सभी गाँवों को विजिट कर सकते हैं, लेकिन लद्दाख के परमिट (ILP) में इन चारों गांव का नाम जिक्र किया गया होना चाहिए।
तुरतुक के लोग अपने परिवार वालों के भरण-पोषण करने के लिए क्या करते हैं ?
इस गांव के आसपास ऐसा कोई भी काम नहीं है, जहां पर इस गांव के लोग जाकर काम कर सकें और थोड़े बहुत पैसे कमा सकें।
इस गांव का मुख्य फसल जौ है, इसलिए इस गांव के लोग जौ की खेती करते हैं और इस गांव में कुछ खूबानी (apricot) के पेड़ लगे हुए हैं। जब खुबानी का फल तैयार हो जाता है, तो वे लोग उस खूबानी को बेचकर कुछ पैसे कमाते हैं, जिससे उनके परिवार वालों का भरण-पोषण होता है।
इस गांव के कुछ लोग अपने परिवार वालों के पेट को भरने के लिए टूरिस्टों के लिए अपना होटल्स और होमस्टे वगैरह प्रदान कराते हैं, जिससे वे लोग थोड़े बहुत पैसे कमा सकें और अपने परिवार वालों का भरण-पोषण कर सकेें।
क्या इस गांव के आसपास अभी भी भारत-पाक के बीच युद्ध होती है ?
नहीं, 1971 के भारत-पाक युद्ध के बाद पहली बार 1999 में एक बार युद्ध हुआ था, जो लगभग एक महीने तक चला था और उस समय के बाद अभी तक इस गांव के आसपास भारत-पाक के बीच एक भी युद्ध नहीं हुआ है।
आशा करता हूं कि मेरे द्वारा “तुरतुक लद्दाख का एक खूबसूरत गांव” के बारे में दी गई जानकारी आपको अच्छी लगी होगी। अगर यह जानकारी आपको अच्छी लगी हो और इस गांव से संबंधित आपके सभी सवाल स्पष्ट हो गए हों, तो आप इस जानकारी को अपने दोस्तों, रिश्तेदारों और आसपास के लोगों के साथ शेयर करें, जिससे कि उनको भी तुरतुक गांव के बारे में जानकारी प्राप्त हो सके।
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धन्यवाद।
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