रणथंबोर किला का इतिहास | History Of Ranthambore Fort Rajasthan In Hindi.

यह राजस्थान के सबसे प्रमुख किलों में से एक है, जिसका निर्माण राजा जयंत सिंह के द्वारा पांचवी शताब्दी में किया गया था और यह किला लगभग 16 साल पुराना हो चुका है। यह किला राणा हम्मीर देव चौहान के शासन काल से काफी प्रसिद्ध हो गया। ऐसा नहीं है कि इनके पहले इस दुर्ग (किला) पर दूसरे शासक ने शासन नहीं किया है, लेकिन इस किले का इतिहास राणा हम्मीर देव के समय का बड़ा ही भयानक था।

राजा हम्मीर सिंह चौहान ने 1282 ई० से 1301 ई० यानी 19 वर्षों तक इस किला पर शासन किया था। जब राणा हम्मीर देव यहां के शासक थे, तो उस समय दिल्ली के शासक जलालुद्दीन खिलजी ने रणथंभौर किला पर आक्रमण किया था, लेकिन वह इस किला को जीत न सका और अपनी पराजय स्वीकार कर वापस दिल्ली चला गया।

अलाउद्दीन खिलजी, जलालुद्दीन खिलजी का भतीजा था, जिसने कई बार रणथंभौर किले को जितने का प्रयास किया, लेकिन हमेशा उसकी पराजय हुई। अलाउद्दीन खिलजी का दिल्ली आने का एक मुख्य कारण यह था कि वह अपने चाचा जलालुद्दीन खिलजी का वध करना चाहता है, जो उसने पूरा कर दिया। अलाउद्दीन खिलजी ने अपने चाचा जलालुद्दीन खिलजी का वध करने के बाद एक बार भी रणथंभौर किले की तरफ आंख उठा कर नहीं देखा।

अलाउद्दीन खिलजी का एक मंत्री था, मुहम्मद साहा था। उसका अलाउद्दीन खिलजी की बेगम के साथ अनैतिक संबंध था, जिसके बारे में जानने के बाद अलाउद्दीन खिलजी ने यह कहते हुए अपने राज्य से निकाल दिया कि जो भी राजा मेरे मंत्री को शरण देगा, उसे मैं लगातार युद्ध करता रहूंगा।

साहा पूरे भारत में घूमता रहा, लेकिन उसे कहीं पर भी शरण नहीं मिली और वह अंततः राजस्थान के रणथंभौर किले के शासक राणा हम्मीर देव के पास आ पहुंचा। राणा हम्मीर देव चौहान ने साहा को अपने राज्य में शरण दे दी, क्योंकि शरण में आए अतिथि को शरण देना और उनकी रक्षा करना राणा हम्मीर देव चौहान का प्रथम धर्म था, जिसका उन्होंने पालन किया और साहा को अपने राज्य में शरण दिया।

इस बात का पता लगते ही अलाउद्दीन खिलजी अपनी सेना लेकर राणा हम्मीर देव से युद्ध करने आ पहुंचा, लेकिन इस बार भी उसे पराजय ही हाथ लगी। जब अलाउद्दीन खिलजी को लगा कि वह रणथंभौर किला को जीत नहीं सकता, तो उसने अपने दिमाग से काम लिया। अलाउद्दीन खिलजी ने राणा हम्मीर देव के पास एक चिट्ठी लिखकर भेजा, जिसमें लिखा था कि मैं आपसे संधि करना चाहता हूं, इसलिए आप मेरे कैंपस में प्रस्थान करें। राणा हम्मीर देव अलाउद्दीन खिलजी की चालाकी समझ गए और वे अलाउद्दीन खिलजी के कैम्पस में खुद न जाकर अपने तीन कमांडर सामंत गुजराय, रंतीपाल और रणमल को भेजा।

अलाउद्दीन खिलजी ने राणा हम्मीर देव के तीनों कमांडरों के स्वागत में कोई कसर नहीं छोड़ी। अलाउद्दीन खिलजी ने उन तीनों कमांडरों को लालच देते हुए कहा कि आपलोग रणथंभौर किले पर मेरा जीत हासिल करवा दो और उसके बाद मैं रणथंभौर का भार आपके ऊपर सौंप दूंगा, ताकि राणा हम्मीर देव पर विजय प्राप्त करने का मेरा पूरा हो सके। तीनों कमांडर अलाउद्दीन खिलजी की बात मान गए और राणा हम्मीर देव से युद्ध करने के लिए तैयार हो गए।

जब इस बात राणा हम्मीर देव को पता चला, तो उन्होंने अपनी सभी रानियों को एक जगह बुला कर उनसे कहा कि मैं अलाउद्दीन खिलजी से युद्ध करने जा रहा हूं। जैसा की आप सभी जानती ही हैं कि हमारे राज्य का झंडा ऑरेंज कलर का है और अलाउद्दीन खिलजी का झंडा काला कलर का है। इसलिए अगर मैं युद्ध में मारा जाऊं, तो आपलोग जौहर कर लेना। अगर मेरी हार हुई , तो आपलोगों को इस किले की तरफ काला झंडा लेकर आते हुए सेना दिखाई देंगे और अगर मेरी जीत हुई, तो आपको ऑरेंज कलर का झंडा दिखाई देगा। इसलिए अगर आपको कला झंडा दिखाई दे, तो आपलोग जौहर कर लेना। इस बात को अपने सभी रानियों को समझाते हुए राणा हम्मीर देव युद्ध भूमि की ओर निकल पड़े।

आखिर में राणा हम्मीर देव चौहान को युद्ध में विजय प्राप्त हुआ, लेकिन अलाउद्दीन खिलजी का वध करने के बाद एक ऐसी घटना हुई, जिसके बारे में जानने के बाद आपका खून खौल उठेगा। जब राणा हम्मीर देव अपने सेना को लेकर अपने किला की ओर बढ़े, तो उन्होंने देखा कि उनके तीनों कमांडरों ने काला झंडा लेकर किले की ओर बढ़े जा रहे थे। राणा हम्मीर देव ने उन तीनों कमांडरों के हाथ में कला झंडा को देखते ही उन तीनों कमांडरों का पीछा करने लगे, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। जब रानियों ने अपने किला की ओर काला झंडा लेकर आते हुए सेना दिखाई दिए, तो राजा हम्मीर देव के आज्ञानुसार रानियों ने जौहर कर लिया।

राजा उन तीनों कमांडरों को पीछा करते हुए किला के द्वार पर आ पहुंचे और उन्होंने किला के दूसरे द्वार, जिसे एलीफेंट पोल (गेट) कहा जाता है, पर रणमल नामक कमांडर का सिर काट दिया।

नोट:- राजस्थान में गेट को पोल कहा जाता है।

राणा हम्मीर देव किला के अंदर प्रवेश ना कर सके, इसलिए बाकी के दोनों कमांडरों ने गणेश पोल को अंदर से बंद कर दिया। जब राणा हम्मीर देव ने गणेश पोल को बंद देखा, तो उन्होंने अपने इष्ट देवता भगवान शिव से प्रार्थना की। कहा जाता है कि प्रार्थना के बाद भगवान शिव ने राणा हम्मीर देव के घोड़े में मानो जैसे पवन शक्ति दे दी हो, की राणा हम्मीर देव का घोड़ा चट्टान के ऊपर चढ़ गया।

किला में प्रवेश करने के बाद राणा हम्मीर देव ने बाकी के दोनों कमांडरों का भी सिर काट दिया। दोनों कमांडरों का सिर काटने के बाद जब राणा हम्मीर देव अपने रानियों को के पास पहुंचे, तो उन्होंने अपनी सभी रानियों को मरा हुआ पाया, जिन्हें देख कर वे बहुत क्रोधित हो गए और भगवान शिव के पास जाकर उन्होंने अपना खुद का सिर काट कर भगवान शिव को समर्पित कर दिया। भगवान शिव ने सब कुछ ठीक कर देने को कहा, लेकिन राणा हम्मीर देव इतना हठ्ठी थे, कि उन्होंने अपने रानियों के साथ हुए उस घटना की वजह से जीने के लिए साफ-साफ मना कर दिया।

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धन्यवाद !

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1 COMMENT

  1. Padmla jo kund hai uski bhi kuchh bate hai Jo sunne ko milti hai uski jankari bhi hai kya Aapke pass.

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