ताड़केश्वर मंदिर उत्तराखण्ड राज्य के गढ़वाल के लैंसडाउन का मुख्य पर्यटन स्थल है, जो भगवान शिव को समर्पित एक प्राचीन मंदिर है। आज के इस ब्लॉग में मैं आपको ताड़केश्वर मंदिर के बारे में संपूर्ण जानकारी देने वाला हूं, जिसके बारे में जानने के बाद आपको ताड़केश्वर मंदिर की यात्रा करने में आसानी हो जाएगी।
ताड़केश्वर मंदिर कहां स्थित है ?
यह मंदिर भारत के उत्तराखंड राज्य के गढ़वाल क्षेत्र के कोटद्वार से 67 किमी. और लैंसडाउन से 37 किमी. की दूरी पर स्थित है, जो भगवान शिव को समर्पित देवदार के वृक्षों के बीच स्थित है।
ताड़केश्वर मंदिर कब खुलता और बंद होता है ?
यह मंदिर सुबह 8:00 बजे खुलता है और शाम 5:00 बजे बंद हो जाता है, जिसके बीच में आप कभी भी जाकर मंदिर के दर्शन कर सकते हैं।
ताड़केश्वर मंदिर के बारे में –
यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित एक प्राचीन मंदिर है, जहां पर भगवान शिव और माता पार्वती के मंदिर स्थापित किया गया है। पौराणिक कथाओं के अनुसार ताड़केश्वर मंदिर का इतिहास राक्षस राज ताड़कासुर के समय का है, जिसके नाम पर ही इस मंदिर का नाम ताड़केश्वर रखा गया है। ऐसा माना जाता है कि यहां आने वाले श्रद्धालुओं की हर मनोकामना भगवान शिव पूरी करते हैं। इस मंदिर में भगवान शिव के प्रमुख त्योहार महाशिवरात्रि के दिन विशेष पूजा की जाती है।
गाड़ी से उतरने के बाद ताड़केश्वर मंदिर जाने के लिए सीढ़ी से नीचे उतरना पड़ता है, जिसकी दूरी लगभग 500 मीटर है। मंदिर में जाने के बाद वहां की शांति और देवतार के वृक्षों के नीचे बैठकर समय बिताना सबको पसंद होती है।
ताड़केश्वर मंदिर की ऊंचाई कितनी है ?
उत्तराखण्ड राज्य में स्थित भोलेनाथ का यह मंदिर समुद्र तल से लगभग 2092 मीटर (6863 फूट) की ऊंचाई पर स्थित है।
ताड़केश्वर मंदिर के आसपास क्या-क्या है?
मंदिर के चारों ओर देवदार और चीड़ के वृक्ष काफी ज्यादा मात्रा में देखने को मिल जाएंगे। देवदार के वृक्ष ऊंचाई के साथ-साथ नमी वाले जगहों पर ही उगते हैं। मंदिर के बगल में एक खास कुंड भी है, जिसे खुद माता पार्वती ने खोदा था। इस कुंड के जल से ही भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक होता है। ऐसी मान्यता है कि इस कुंड के पानी पीने से आप रोग मुक्त सकते हैं। यहां पर आप हजारों की संख्या में घंटियां देख सकते हैं, जिसे मनोकामना पूरी होने के बाद भक्तगण चढ़ाते हैं।
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ताड़केश्वर मंदिर में क्यों नहीं जा सकते असवाल जाति के लोग –
उत्तराखंड के चोरिखल ब्लॉक में असवालों का एक गांव था, जहां पर असवाल जाति के लोग साहूकार हुआ करते थे और उस गांव के बगल में ही ताड़केश्वर जी भी रहते थे, जो भगवान शिव के एक अनन्य भक्त थे। जब कोई व्यक्ति इनकी आंखों के सामने किसी जीव-जंतु और पक्षियों को नुकसान पहुंचाता, तो उन्हें बहुत पीड़ा होती थी और वे जीव-जंतुओं को नुकसान पहुंचाने वालों को दंड दिया करते थे।
एक दिन की बात है कि असवाल जाति के लोग एक बैल को खिलाए-पिलाए खेत की जुताई कर रहे थे और तभी वहां पर ताड़केश्वर जी आ पहुंचे। ताड़केश्वर जी के द्वारा बैलों को खिलाने-पिलाने की बात कहने पर असवाल जाति के लोग उनसे झगड़ गए और एक-दूसरे को गांव छोड़ने को कहने लगे। जब इस बात की खबर गांव में पहुंची, तो शाम में मीटिंग हुई, जिसमें कहा गया कि कल एक मलयुद्ध होगा और उसमें जो भी हारेगा उसे ही गांव छोड़ कर जाना पड़ेगा।
अगले दिन मलयुद्ध होने से पहले असवाल जाति का वह व्यक्ति जो ताड़केश्वर जी से युद्ध करने वाला था, अपने पूरे शरीर में सरसों का तेल लगा लिया, ताकि जब उसे ताड़केश्वर जी पकड़ें तो वह उनकी हाथों से फिसल जाए, क्योंकि सरसों के तेल में फिसलन अधिक होती है। जब युद्ध शुरू हुआ तो असवाल जाति के लोगों ने सोंचा था, बिल्कुल वैसा ही हो रहा था। जब भी ताड़केश्वर जी उस व्यक्ति को पकड़ते वह उनकी हाथों से फिसल जाता।
युद्ध में किसी भी एक व्यक्ति की हर नहीं होने पर असवाल जाति के बाकी लोगों ने युद्ध खत्म होने से पहले ही ताड़केश्वर जी को मारने लगे। असवाल जाति के लोगों का यह बरताव देख कर ताड़केश्वर जी वहां से अपनी जान बचाकर भाग निकले और वर्तमान में स्थापित भगवान शिव के मंदिर के आस पास आ पहुंचे और उसी स्थान पर भगवान शिव की तपस्या करने लगे। कुछ दिनों तक तपस्या करने के बाद भगवान शिव उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ताड़केश्वर जी को अमरता का वरदान दे दिया और कहा कि इस जगह पर मेरी पूजा तुम्हारे नाम से होगी।
अमरता का वरदान पाने के बाद ताड़केश्वर जी ने असवाल जाति के लोगों को वर्तमान में स्थापित इस मंदिर में ना आने का श्राप देते हुए कहा कि अगर कोई असवाल जाति का व्यक्ति इस मंदिर में आता है, तो उसके साथ कुछ ना कुछ अशुभ जरूर होगा। साथ ही उन्होंने इस मंदिर सरसों का तेल और कंधार के पत्ते को इस मंदिर में ना लाने को कहा था।
ताड़केश्वर मंदिर देहरादून, ऋषिकेश, हरिद्वार, कोटद्वार और लैंसडाउन से कितनी दूरी पर स्थित है ?
देहरादून, ऋषिकेश, हरिद्वार, कोटद्वार और लैंसडाउन के साथ-साथ निम्न शहरों से ताड़केश्वर मंदिर की दूरी –
देहरादून185 किमी.
ऋषिकेश154 किमी.
हरिद्वार142 किमी.
कोटद्वार67 किमी.
लैंसडाउन37 किमी.
ताड़केश्वर मंदिर के आस पास ठहरने की सुविधा –
ताड़केश्वर मंदिर के आस पास कहीं पर भी ठहरने के लिए होटल्स और रूम वगैरह के सुविधा उपलब्ध नहीं है। मंदिर के परिसर में एक धर्मशाला बनाया गया है, जहां पर आप खाना खाने के बाद विश्राम कर सकते हैं। अगर आप मंदिर में दर्शन करने के बाद रात को ठहरने के लिए कोई होटल या रूम लेना चाहते हैं, तो आपको इस मंदिर से 20-25 किमी. पहले लैंसडाउन की तरफ आना पड़ेगा, क्योंकि रात को ठहरने के लिए ताड़केश्वर मंदिर का सबसे नजदीकी जगह वही है, जहां पर आपको रूम, होटल्स और रेस्टोरेंट्स की सुविधा मिल जाएगी।
मुझे उम्मीद है कि मेरे द्वारा “ताड़केश्वर मंदिर” के बारे में दी गई जानकारी आपको अच्छी लगी होगी।
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धन्यवाद !
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