वैद्यनाथ धाम का इतिहास | History Of Baidyanath Dham In Hindi.

आज मैं आपको “वैद्यनाथ धाम का इतिहास” के बारे में बताने वाला हूं, जिनका इतिहास राक्षसराज रावण से जुड़ा हुआ है। मैं आपको वैद्यनाथ धाम का इतिहास इसलिए बता रहा हूं, ताकि आपको भी पता चल सके कि आखिर क्या है बाबा वैद्यनाथ धाम का इतिहास। तो आइए जानते हैं बाबा वैद्यनाथ धाम के इतिहास के बारे में –

बाबा वैद्यनाथ धाम का इतिहास क्या है ?

रावण ने कई बार भगवान शिव को कैलाश पर्वत सहित लंका ले जाने का प्रयास किया, लेकिन वह कभी भी सफल नहीं हो पाया, इसलिए वह भगवान शिव की घोर तपस्या करने लगा।

रावण के अराधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने रावण से वर मांगने को कहा। तत्पश्चात रावण ने वर के रूप में भगवान शिव को कैलाश पर्वत को छोड़ कर अपने साथ लंका नगरी में चलने को कहा। भगवान शिव लंका में जाना तो नहीं चाहते थे, लेकिन रावण द्वारा मांगे गए इस वर को पूरा करने की वजह से भगवान शिव रावण के साथ लंका नगरी में जाने के लिए राजी हो गए, लेकिन उन्होंने रावण के साथ लंका नगरी में जाने से पहले यह शर्त रखी कि अगर तुम मेरे शिवलिंग को धरती पर रखोगे, तो मैं हमेशा के लिए वहीं पर विराजित हो जाऊंगा। रावण को अपने बल के ऊपर इतना घमंड था कि उसने तुरंत भगवान शिव के इस शर्त को स्वीकार कर लिया।

जब रावण शिवलिंग को लंका नगरी में ले जाने लगा, तो सभी देवी-देवता भगवान विष्णु के पास पहुंचे और उन्हें इस घटना के बारे में सारी बातें बताईं और भगवान शिव को लंका नगरी ले जाने से रोकने को कहा। भगवान विष्णु ने सभी देवी-देवताओं को शांत रहने को कहा और वहां से निकल पड़े।

भगवान विष्णु सबसे पहले गंगा जी के पास पहुंचे और उन्होंने गंगा जी से रावण के पेट में विराजमान होने को कहा और वे खुद एक ग्वाले के रूप में धरती पर आ पहुंचे। जब रावण को लघु शंका लगी, तो वह धरती पर आ गया, तभी उसे भगवान विष्णु, जो ग्वाले के रूप में थे, दिखाई दिए। जब रावण को कुछ भी न सूझा तो उसने उस ग्वाले को बुलाया और कहा कि मैं लघुशंका करने जा रहा हूं, तब तक तुम इस शिवलिंग को पकड़े रहो और जब तक मैं वापस ना आ जाऊं, तुम इस शिवलिंग को धरती पर मत रखना।

ग्वाले ने कहा कि मेरे पास ज्यादा समय नहीं है। इसलिए रावण ने ग्वाले की बात मानकर लघु शंका करने चला गया उसके पेट में गंगा जी विराजमान थी जिसकी वजह सेकुछ देर बाद ग्वाला रूपी भगवान विष्णु ने शिवलिंग को जमीन पर रख दिया और वहां से चले गए। जब गंगा जी ने शिवलिंग को जमीन पर देखा, तो वह भी रावण के पेट से निकल कर अपने निवास स्थान की ओर चली गई।

जब रावण लघुशंका करके वापस आया तो उसने देखा की शिवलिंग जमीन पर पड़ा है और ग्वाला भी वहां से पर नहीं था। इतना देखकर रावण ने शिवलिंग को उठाने के लिए अपनी पूरी जान लगा दी, लेकिन शिवलिंग रावण से हिल भी ना सका। तब रावण ने भगवान शिव को पैर से मार कर लंका चला गया। इस पूरी घटना को वहां पर उपस्थित एक ग्वाला पेड़ के पीछे से छुप कर देख रहा था। जब उस ग्वाले ने रावण को शिवलिंग के ऊपर पैर मार कर जाते हुए देखा, तो उसने सोचा कि शायद भगवान शिव की पूजा ऐसे ही की जाती है और उस ग्वाले ने प्रतिदिन खाना खाने से पहले शिवलिंग के ऊपर लाठी से मारनी शुरू कर दी।

एक दिन उस ग्वाले को जोर की भूख लगी और वह अपने घर खाना खाने चला गया। जब उस ग्वाले ने खाना को अपने मुंह में डालने ही वाला था कि उसे याद आया कि उसने आज शिवलिंग के ऊपर लाठी नहीं मारी है और वह ग्वाला अपने घर से से उठकर शिवलिंग के पास जाने लगा।

शिवलिंग के पास पहुंचने के बाद जैसे ही ग्वाले ने शिवलिंग के ऊपर लाठी मारने की कोशिश की, तभी भगवान शिव प्रकट हो गए। इतना देख कर ग्वाले ने भगवान शिव से माफी मांगी और उनसे क्षमा करने की प्रार्थना करने लगा। लेकिन भगवान शिव उसके इस प्रकार की पूजा अर्चना से इतना प्रसन्न हुए कि उन्होंने इस स्थान को बैजनाथ नाम रख दिया, क्योंकि उस ग्वाले का नाम बैजू था, इसलिए उन्होंने पहले उस ग्वाले का नाम और उसके बाद मैं अपना नाम रखा और तभी से इस स्थान पर हर साल करोड़ों लोग भगवान शिव के दर्शन करने आते हैं।

मुझे उम्मीद है कि यह जानकारी आपको अच्छी लगी होगी। अगर इस पोस्ट से संबंधित आपका कोई सवाल हो, तो आप हमें कमेंट बॉक्स में पूछ सकते हैं। मैं आपको जवाब देने की कोशिश जरूर करूंगा।

धन्यवाद !

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