गर्जिया देवी, जिसे गिरिजा देवी नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर उत्तराखंड राज्य का प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में से एक है। माता पार्वती को समर्पित यह मंदिर उत्तराखंड राज्य के सुंदरखाल गांव में कोशी नदी के बीच में स्थित है, जो रामनगर से 15 किमी. की दूरी पर रानीखेत हाईवे से 1 किमी. अंदर की ओर है। आज मैं आपको इस ब्लॉग में गर्जिया देवी मंदिर के इतिहास से जुड़े सभी चीजों को बारी-बारी से बताने वाला हूं, ताकि आप सभी पाठकों को गर्जिया देवी मंदिर का इतिहास जानने के लिए किसी अन्य ब्लॉग में जाना न पड़े।
गर्जिया देवी या गिरिजा देवी मंदिर कहां स्थित है ?
गर्जिया देवी मंदिर उत्तराखंड राज्य के नैनीताल जिले के सुंदरखाल गांव में स्थित है, जो नैनीताल शहर से करीब 77 किमी. और रामनगर से करीब 15 किमी. की दूरी पर स्थित है।
गर्जिया देवी या गिरिजा देवी मंदिर का इतिहास – History of Girija (Garjiya) Devi Temple In Hindi.
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार गिरिजा देवी गिरिराज हिमालय की पुत्री और भगवान शिव की पत्नी है। इनके पिता गिरिराज हिमालय के नाम पर ही इनका नाम गर्जिया देवी रखा गया था। वर्तमान समय में उपटा के जिस टीले पर मां गर्जिया देवी निवास कर रही हैं, वह कोसी नदी के बाढ़ में किसी ऊंचे स्थान से बहकर आ रहा था, तो उन्हें देख भैरव देव उन्हें यहीं पर ठहरने का प्रस्ताव रखा, और तभी से मां गिरिजा देवी भैरव देव के कहने पर इस टीले पर निवास कर रही हैं। स्थानीय लोगों द्वारा इस मंदिर को गर्जिया देवी के नाम से भी जाना जाता है, जिसके पीछे एक रोचक घटना बताई जाती है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार कहा जाता है कि एक बार यहां पर श्री 108 महादेव गिरी महाराज आए थे, जो अपने साथ कुछ मूर्तियां भी लेकर आए थे। जब वे इन मूर्तियों को मंदिर के आसपास के क्षेत्रों में स्थापित कर रहे थे, तो अचानक पास के घने जंगल से शेरों के गरजने की आवाज सुनाई देने लगी, गिरी महाराज ने माता का संकेत समझा और इन शेरों के गरजने के आधार पर उन्होंने इस मंदिर को गर्जिया देवी कहा। गर्जिया देवी मंदिर के आसपास के स्थानीय लोग गर्जिया देवी नाम पड़ने से पहले इस मंदिर को उपटा देवी के नाम से संबोधित किया करते थे।
एक समय ऐसा था जब पैदल तीर्थयात्री सुंदरखाल गांव से होकर बद्रीनाथ-केदारनाथ की यात्रा करते थे, लेकिन पैदल जाने वाले तीर्थयात्रियों में से किसी का भी ध्यान सुंदरखाल गांव से मात्र 500 मीटर दूर स्थित इस मंदिर पर नहीं पड़ता था। जनश्रुतियाँ बताती है कि सर्वप्रथम वन कर्मियों की नजर नदी पार टीले पर रखी मूर्तियों पर पड़ी थी, जिसके बाद आसपास के क्षेत्रों में यह घटना चर्चा का विषय बन गया। इस बात को जानने के बाद रानीखेत निवासी पंडित रामकृष्ण पांडेय यहां आए और तभी से वे माता गर्जिया देवी की पूजा-अर्चना करने लगे। रामकृष्ण पांडेय का निधन होने के बाद भी उनका पूरा परिवार माता गर्जिया देवी की सेवा में कार्यरत हैं।
महाभारत कालीन राजा विराट ने मां गर्जिया देवी की उपासना की थी और साथ ही कौशिकी ऋषि ने भी माता गर्जिया देवी की उपासना की थी, इसलिए यह नदी पुराणों में कौशिकी नदी के नाम से प्रसिद्ध है और कौशिकी ऋषि के नाम पर ही इस नदी का नाम कोशी नदी रखा गया।
गर्जिया देवी मंदिर से जुड़े इस बात को बहुत कम लोग जानते हैं कि इस मंदिर में लक्ष्मीनारायण की एक मूर्ति स्थापित है, जिसे 10 वीं सदी का माना जाता है। इसके पीछे एक रोचक कहानी जुड़ा हुआ है, जिसके बारे में बहुत कम लोगों को पता है। इसके साथ-साथ मंदिर के परिसर में आपको माता सरस्वती, गणेश और भैरव देव की मूर्तियां भी देखने को मिल जाएगी।
उम्मीद है कि इस पोस्ट को पढ़ने के बाद आपको गर्जिया देवी मंदिर के इतिहास के बारे में जानकारी मिल गई होगी। इस तरह के और भी जानकारी प्राप्त करने के लिए आप हमें कमेंट कर सकते हैं।
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