परमार्थ निकेतन आश्रम ऋषिकेश के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है, जिसे 1942 ई० में स्वामी सुकदेवानन्द द्वारा गरीब और अनाथ बच्चों को वैदिक और पारंपरिक शिक्षा के साथ-साथ वेद का अध्ययन करने के लिए बनाया गया है। इस आश्रम में गंगा जी की होने वाली शाम की आरती पूरे दुनिया में प्रसिद्ध है, जिसे देखने के लिए हर साल देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ देखी जा सकती है।
परमार्थ निकेतन आश्रम की स्थापना कब और किसने किया था ?
यह आश्रम ऋषिकेश का सबसे बड़ा आश्रम है, जिसकी स्थापना 1942 ई० में स्वामी सुकदेवानन्द ने की थी। बाद में इस आश्रम के अध्यक्ष के रूप में स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती को चुना गया। यह आश्रम गरीब और अनाथ बच्चों के लिए बनाया गया है। यहां पर बच्चों को वैदिक और पारंपरिक शिक्षा देने के साथ-साथ वेद का अध्ययन भी कराया जाता है।
परमार्थ निकेतन आश्रम कहां स्थित है ?
यह आश्रम ऋषिकेश के सप्त सरोवर रोड पर स्थित है। यह रोड ऋषिकेश का सबसे प्रसिद्ध रोड है, जहां पर आपको बहुत से मंदिर देखने को मिल जाएंगे।इ
परमार्थ निकेतन आश्रम में आकर्षण का केंद्र क्या-क्या है ?
परमार्थ निकेतन आश्रम में भगवान शिव की एक विशाल प्रतिमा है, जिसे गंगा जी के बीच में बनाया गया है। इस स्थान पर पहले भगवान शिव की एक दूसरी प्रतिमा स्थापित की गई थी, लेकिन जून 2013 में आई प्राकृतिक आपदा में गंगा जी का लेबल इतना बढ़ गया था कि उस बहाव में भगवान शिव की प्रतिमा भी बह गई, जिसके बाद उसी स्थान पर भगवान शिव की एक दूसरी विशाल प्रतिमा को आधुनिक तरीके और मजबूती के साथ बनाया गया है और इस प्रतिमा को वर्तमान समय में इस आश्रम में देखा जा सकता है।
परमार्थ निकेतन आश्रम में बने भगवान शिव की प्रतिमा को गंगा नदी के बीच में बनाया गया था , जिसकी वजह से श्रद्धालु लोग उस प्रतिमा के पास नहीं पहुंच पाते थे, इसलिए इस प्रतिमा के पास जाने के लिए एक छोटा-सा पुल बनाया गया, ताकि श्रद्धालुओं को इस प्रतिमा का दर्शन और पूजा करने में आसानी हो सके।
इस आश्रम में स्थापित भगवान शिव की विशाल मूर्ति को देखने के बाद एक अलग ही सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है, जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है।
जिस तरह हरिद्वार में गंगा जी की आरती ब्रह्मकुंड घाट के हर की पौड़ी में होती है, उसी तरह गंगा जी की आरती परमार्थ निकेतन आश्रम में होती है।
इस आश्रम में होने वाली आरती को बहुत ही शुभ माना जाता है, जिसकी तारीफ शब्दों में बयां नहीं की जा सकती है। इस आश्रम में सूर्यास्त के समय होने वाली आरती विश्व भर में प्रसिद्ध है, जिसे देखने के लिए सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि विदेशों से भी सैलानी आते रहते हैं। ठंडी हवाओं के बीच हजारों दीपकों की रोशनी को देखने के बाद एक अद्भुत ही अनुभव होता है।
परमार्थ निकेतन आश्रम के अंदर प्रवेश करने के बाद आपको बाई तरफ सुंदर मूर्तियां, जिन्हें पौराणिक कथाओं के आधार पर बनाई गई है, देखने को मिलेगी और दाई ओर पर्वत, देवताओं के विशाल मूर्तियां एवं उनके प्रतिबिंब देखने को मिलेंगे।
यह आश्रम काफी अधिक क्षेत्र में फैला हुआ है, जिसे बाहर और अंदर दोनों तरफ से देखने पर बेहद खूबसूरत लगता है। इस आश्रम के अंदर चारों ओर हरियाली ही हरियाली है, जिसे देखने के बाद एक अलग ही जगह का अनुभव होता है।
इस आश्रम में आपको 50 फ़ीसदी के आस-पास विदेशी सन्यासी भी देखने को मिल जाएंगे, जो सफेद वस्त्र धारण किए होते हैं।
ये सभी चीजें पर्यटकों को देश-विदेश से आने के लिए अपनी और आकर्षित करते हैं। इस आश्रम में आकर्षण का मुख्य केंद्र शिव की विशाल प्रतिमा और सूर्यास्त के समय यहां होने वाली आरती है, जिसे देखने के लिए हर साल यहां देश-विदेश से सैलानी आते रहते हैं।
परमार्थ निकेतन आश्रम में सिखने योग्य क्या-क्या है ?
यह एक ऐसा आश्रम है, जिसमें नि:शुल्क योगासन सिखाया जाता है। अगर आप किसी और जगह से सम्बन्ध (belong) रखते हैं, तो आप यहां रेंट पर रूम लेकर फ्री में योगासन सीख सकते हैं।
इस आश्रम में अनुशासन में रहने, लोगों से अच्छे तरीके से बातचीत करने, वैदिक और पारंपरिक शिक्षा देने के साथ-साथ वेद का अध्ययन भी कराया जाता है, जिसे यहां आने के बाद आप सिख सकते हैं।
क्या परमार्थ निकेतन आश्रम में प्रवेश करने के लिए प्रवेश शुल्क देना पड़ता है ?
नहीं, परमार्थ निकेतन आश्रम में जाने, फोटो खींचने और वीडियो वगैरह शूट करने के लिए किसी से भी परमिशन लेने की जरूरत नहीं पड़ती है। इसमें आप नि: शुल्क प्रवेश कर सकते हैं और कहीं का भी फोटो और वीडियो वगैरह शूट कर सकते हैं।
मुझे पूर्ण विश्वास है कि यह जानकारी आपको अच्छी लगी होगी। मैं आशा करता हूं कि ऋषिकेश जाने के बाद आप इस आश्रम को जरूर visit करेंगे। आप सभी पाठकों से मेरा अनुरोध है कि आप मेरे द्वारा दी गई इस जानकारी को अपने आस-पड़ोस के लोगों, दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ शेयर करें, जिससे कि हमारे अन्दर जागरूकता पैदा हो सके।
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धन्यवाद !
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