आज मैं आपको लद्दाख का गाँव त्याक्षी के बारे में बताने वाला हूं। त्याक्षी भारत के केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के लेह जिले में बसा हुआ एक छोटा और बहुत ही प्यारा सा गांव है। इस गांव के किनारे ही श्योक नदी बहती है, जो इस गांव की खूबसूरती और भी बढ़ा देती है।
इस गांव में चार भाषाएं जैसे- हिंदी, उर्दू, बाल्ती और लद्दाखी बोली जाती है। यहां का मुख्य फसल गेहूं है। यहां के लोग गेहूं को पीसकर सर्दी के मौसम में खाने के लिए बचा कर रखते हैं। इस गांव में आपको बहुत सारे सेब (apple) और खूबानी (apricot) के पेड़ भी देखने को मिल जाएंगे।
लद्दाख का गांव त्याक्षी भारत का दूसरा सबसे अंतिम उत्तरी गांव है और भारत का सबसे अंतिम उत्तरी गांव थांग है, जहां से भारत-पाक सीमा मात्र 2.2 किमी. की दूरी पर है।
त्याक्षी गांव के इतिहास के बारे में संपूर्ण जानकारी :- History of Tyakshi Village Tourist Place In ladakh In Hindi.
1947 में भारत-पाक बंटवारे के समय त्याक्षी सहित अन्य तीन गांव तुरतुक, थांग और चुलुंका बल्तिस्तान क्षेत्र में आता था, जिसे गिलगिट बल्तिस्तान कहा जाता है। गिलगिट बल्तिस्तान में बाल्ती बोली जाती है, जो यहां का मुख्य भाषा है। दिसंबर 1971 में भारत-पाक के बीच युद्ध हुआ, जो 13 दिनों (3-16 दिसंबर) तक चला था। युद्ध के दौरान इन चारों गांव पर भारत ने कब्जा कर लिया और जैसा कि यहां के लोग बोलते हैं कि हम लोग रात को सोए तो पाकिस्तान में थे और सुबह जागे तो हिंदुस्तान में आ गए।
1971 के युद्ध के पहले इस गांव में कोई रोजगार न होने के कारण इस गांव के लोग पाकिस्तान के दूसरे शहर में रोजगार और पढ़ाई कर रहे थे और 1971 के युद्ध के बाद जो लोग पाकिस्तान के दूसरे शहरों में पढ़ाई और रोजगार कर रहे थे, वे लोग वहीं पर रह गए, इसलिए इस गांव के कुछ परिवारों के सदस्य अभी भी पाकिस्तान में फंसे हुए हैं।
बहुत समय पहले त्याक्षी गांव में एक रोग उत्पन्न हुआ था, जिसका नाम निमोनिया था। गांव में निमोनिया फैलने की वजह से इस गांव के बहुत से लोगों की मृत्यु हो गई, जिसे त्याक्षी गांव की जनसंख्या कम होने का मुख्य कारण बताया जाता है।
क्या अभी भी त्याक्षी गांव के आसपास भारत-पाक के बीच लड़ाई होती है ?
नहीं, 1971 केेे बाद 1999 में यहां पर एक बार युद्ध हुआ था, जो करीब 1 महीने तक चला था और उसके बाद अब तक त्याक्षी सहित आसपास के अन्य क्षेत्रों में भी युद्ध नहीं हुआ है।
त्याक्षी में घूमने लायक जगह कौन-सी है ?
अगर आप इस गांव में किसी पर्यटन स्थल का आनन्द लेने के लिए जाना चाहते हैं, तो यह गांव आपके लिए नहीं है, क्योंकि इस गांव में कोई पर्यटन स्थल ही नहीं है।
अगर आप इस गांव की खूबसूरती का आनन्द लेना चाहते हैं और यहां के लोगों के रहन-सहन के बारे में जानना चाहते हैं, तो आप इस गांव मे जा सकते हैं। इस गांव की खूबसूरती हमेशा के लिए आपकी यादों में बस जाएगी।
इस गांव में आपको एक 700 साल पुराना मस्जिद और एक पुराना स्कूल भी देखने को मिल जाएगा, जिसका निर्माण पकिस्तान ने करवाया था। यह स्कूल पत्थर से बना हुआ है। इस गांव में नए स्कूल का निर्माण होने के कारण इस स्कूल को कुछ साल पहले ही बंद कर दिया गया था, लेकिन नए स्कूल के निर्माण होने से पहले पाकिस्तान के उस पुराने स्कूल में ही बच्चों की पढ़ाई कराई जाती थी।
क्या त्याक्षी गांव के लोग पाकिस्तान में आ जा सकते हैं ?
नहीं, लेकिन अगर मुस्लिम का कोई भी त्योहार जैसे- ईद, मुहर्रम वगैरह आता है, तो उस त्योहार से 1 दिन पहले पाकिस्तानी आर्मी अपने चेक पोस्ट पर रात में दीया जलाते हैं और त्याक्षी गांव के लोगों को ऐसा निशानी देते हैं कि कल कोई मुस्लिम का त्योहार जैसे मुहर्रम और ईद वगैरह आने वाला है।
और हां, पाकिस्तान का स्वतंत्रता दिवस 14 अगस्त को मनाया जाता है, इसलिए पाकिस्तानी आर्मी 13 अगस्त के रात भी अपने चेक पोस्ट पर दीया जलाते हैं। वे लोग ऐसा इसलिए करते हैं, क्योंकि त्याक्षी भी पहले पाकिस्तान का ही एक हिस्सा था, लेकिन त्याक्षी गांव के लोग अपने आप को हिन्दुस्तानी मानते हैं और वेलोग 15 अगस्त को ही स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं।
त्याक्षी गांव में सड़क की स्थिति कैसी है ?
इस गांव के रोड पर दिसंबर के महीने में घुटने तक बर्फ जम जम जाता है, जिसकी वजह से त्याक्षी गांव का यह रोड बंद पड़ जाता है और अप्रैल के आसपास बर्फ खत्म होने के बाद फिर से इस रोड पर लोगों का आना जाना लग जाता है।
त्याक्षी गांव के घरों की स्थिति कैसी है ?
इस गांव में जितने भी घर हैं, उनमें आपको ईंट का एक भी टुकड़ा दिखाई नहीं देगा, क्योंकि इस गांव में जितने भी घर और उसके बाउंड्री हैं, वे सब पत्थर के बने हुए हैं।
त्याक्षी गांव के लोग अपने परिवार वालों के पेट भरने के लिए कौन-सा रोजगार करते हैं ?
इस गांव के लोगों के पास ऐसा कोई रोजगार नहीं है, जहां जाकर वे लोग पैसे कमा सकें, इसलिए इस गांव के लोग अपने परिवार के सदस्यों के पेट भरने के लिए कृषि कार्य करते हैं। त्याक्षी गांव में आपको सेब और खुबानी के भी बहुत सारे पेड़ देखने को मिल जाएंगे, जिसे उस गांव के लोग अपना रोजगार मानकर कृषि कार्य करने के साथ-साथ इन पेड़-पौधों की देखभाल भी करते हैं और फल तैयार होने के बाद उसे बाजार में ले जाकर बेचते हैं, जिससे उन्हें थोड़े बहुत पैसे मिल जाते हैं।
मैं आशा करता हूं कि मेरे द्वारा “लद्दाख का गाँव त्याक्षी” के बारे में दी गई जानकारी आपको अच्छी लगी होगी। अगर यह जानकारी आपको अच्छी लगी हो, तो आप इस जानकारी को अपने दोस्तों, रिश्तेदारों और आस-पड़ोस के लोगों के साथ शेयर करें, जिससे कि वे लोग भी “त्याक्षी गांव” के बारे में जान सकें और लद्दाख जाने के बाद विजिट कर सकें।
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धन्यवाद।
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