
भारतीय वायुसेना के प्रमुख एयर चीफ मार्शल अमर प्रीत सिंह का हालिया बयान देश के रक्षा क्षेत्र में व्याप्त गंभीर कमियों और चुनौतियों को उजागर करता है। उन्होंने घरेलू रक्षा क्षेत्र में खरीद और महत्वपूर्ण रक्षा प्रणालियों की डिलीवरी में होने वाली देरी पर गहरी चिंता व्यक्त की है। उनका यह कहना कि “एक भी परियोजना समय पर पूरी नहीं हुई है” और “जब डील साइन करते हैं, तो पता होता है कि वो चीजें कभी समय पर नहीं आएंगी”, यह न केवल रक्षा प्रतिष्ठान में बढ़ती हताशा को दर्शाता है, बल्कि भारत की ‘आत्मनिर्भर भारत’ और ‘मेक इन इंडिया’ जैसी महत्वाकांक्षी पहलों के जमीनी हकीकत पर भी सवाल उठाता है। यह विश्लेषण वायुसेना प्रमुख के बयान के गहरे निहितार्थों, भारत की रक्षा तैयारियों की वर्तमान स्थिति, और आगे की राह पर एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। वायुसेना प्रमुख का बयान
‘मेक इन इंडिया’ से ‘डिजाइन इन इंडिया’ तक: एक अधूरा सपना
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ की पहलें देश को रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम थीं। लेकिन वायुसेना प्रमुख का बयान बताता है कि इन पहलों को जमीनी स्तर पर लागू करने में गंभीर चुनौतियाँ हैं। एयर चीफ मार्शल सिंह ने ‘मेक इन इंडिया’ से आगे बढ़कर ‘डिजाइन इन इंडिया’ की आवश्यकता पर जोर दिया, जिसका अर्थ है कि भारत को न केवल अपने हथियार बनाने चाहिए, बल्कि उन्हें खुद डिजाइन भी करना चाहिए। वायुसेना प्रमुख का बयान
यह बयान उस कड़वी सच्चाई को उजागर करता है कि भारत अभी भी अपनी रक्षा आवश्यकताओं के लिए बड़े पैमाने पर विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भर है। राहुल बेदी जैसे रक्षा विशेषज्ञ इस बात की पुष्टि करते हैं कि किसी भी रक्षा समझौते की प्रक्रिया में अत्यधिक देरी होती है, जिससे परियोजनाएं निर्धारित समय से कई गुना अधिक समय लेती हैं। उदाहरण के लिए, 83 हल्के लड़ाकू विमान तेजस एमके 1ए के लिए एचएएल (HAL) के साथ 2021 में हुए समझौते में भी देरी हो रही है। उन्नत मध्यम लड़ाकू विमान (AMCA) का पहला प्रोटोटाइप भी 2035 तक आने की उम्मीद है, और इसे वायुसेना में शामिल होने में और 13 साल लग सकते हैं, वह भी यदि सब कुछ सुचारू रूप से चले। यह दिखाता है कि भारत की महत्वाकांक्षी योजनाएं अक्सर नौकरशाही की बाधाओं, तकनीकी चुनौतियों और अक्षमता के कारण पटरी से उतर जाती हैं।
इंजन का संकट: आत्मनिर्भरता की सबसे बड़ी बाधा
वायुसेना प्रमुख के बयान का सबसे परेशान करने वाला पहलू, जिसे राहुल बेदी ने भी रेखांकित किया है, वह है भारत की स्वदेशी इंजन विकसित करने में विफलता। बेदी कहते हैं, “किसी भी विमान का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा इंजन होता है। हमने हाल ही में जिस स्टील्थ फाइटर जेट को मंजूरी दी है, उसका इंजन हम नहीं बना रहे हैं। हम अपना इंजन भी विकसित नहीं कर सके।” उन्होंने राफेल, तेजस और यहां तक कि अर्जुन टैंक के उदाहरण दिए, जिनके इंजन आयात किए जाते हैं। वायुसेना प्रमुख का बयान
यह एक गंभीर कमी है जो भारत की रक्षा आत्मनिर्भरता के दावों को कमजोर करती है। जब तक भारत अपने सबसे महत्वपूर्ण रक्षा प्रणालियों के लिए महत्वपूर्ण घटकों, जैसे इंजन, का स्वदेशी उत्पादन नहीं कर पाता, तब तक ‘मेक इन इंडिया’ एक अधूरा सपना ही रहेगा। इंजन तकनीक का अभाव न केवल उत्पादन में देरी का कारण बनता है, बल्कि यह भारत को विदेशी आपूर्तिकर्ताओं पर अत्यधिक निर्भर भी बनाता है, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा पर भी असर पड़ता है।
घटती स्क्वाड्रन संख्या और बढ़ती सुरक्षा चुनौतियाँ
भारतीय वायुसेना की स्वीकृत 42 लड़ाकू विमान स्क्वाड्रन की संख्या के मुकाबले वर्तमान में केवल 30 स्क्वाड्रन हैं। अगले एक-दो साल में दो-तीन स्क्वाड्रन के सेवानिवृत्त होने से यह संख्या घटकर 28 हो जाएगी। यह चिंताजनक है, खासकर भारत के बढ़ते सुरक्षा परिदृश्य को देखते हुए। हाल ही में पहलगाम आतंकवादी हमले और उसके बाद पाकिस्तान के अंदर भारत की एयरस्ट्राइक ने भारत की रक्षा तैयारियों की तात्कालिकता को बढ़ा दिया है। इस चार दिवसीय सैन्य झड़प के बाद, रक्षा तैयारियों को तेज करने की चर्चा तेज हुई है।
एयर चीफ मार्शल का यह बयान इस संदर्भ में देखा जाना चाहिए कि वायुसेना को अपने वर्तमान और भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए तत्काल उपकरणों की आवश्यकता है। उनका दर्द इस बात से भी समझा जा सकता है कि 2018-19 में 114 लड़ाकू जेट विमानों का जो प्रस्ताव दिया गया था, उस पर आज तक कोई प्रगति नहीं हुई है। यह विसंगति, यानी घटती क्षमता और बढ़ती आवश्यकता के बीच का अंतर, भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है।
विश्लेषण की कमी: ‘क्यों’ का जवाब कौन देगा?
वायुसेना प्रमुख ने साफ कहा कि “हम एक वादा क्यों करें जिसे पूरा नहीं किया जा सकता?” यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण सवाल है जिसका जवाब देश के नीति निर्माताओं को देना चाहिए। रक्षा खरीद और उत्पादन में देरी के पीछे क्या कारण हैं? क्या यह नौकरशाही की अक्षमता है, धन की कमी है, तकनीकी विशेषज्ञता का अभाव है, या रक्षा मंत्रालय के भीतर ही कोई संरचनात्मक समस्या है?
राहुल बेदी ने रक्षा मंत्रालय में चल रही ‘प्रणाली’ को जिम्मेदार ठहराया, जहां ‘कोई समय सीमा नहीं’ है और हर चरण में बाधा और देरी होती है। यह ‘सिस्टम’ का मुद्दा एक गहरे विश्लेषण की मांग करता है। सिर्फ बयानबाजी करने या महत्वाकांक्षी कार्यक्रम शुरू करने से कुछ नहीं होगा, जब तक कि उन अंतर्निहित समस्याओं का समाधान न किया जाए जो इन परियोजनाओं में देरी का कारण बनती हैं। क्या सरकार ने इन देरी के कारणों का गहन विश्लेषण किया है और उन्हें दूर करने के लिए ठोस कदम उठाए हैं? यह एक महत्वपूर्ण सवाल है जिसका जवाब अभी भी अनुत्तरित है।
विश्वास और खुले संवाद की आवश्यकता: उद्योग और सशस्त्र बल के बीच की खाई
एयर चीफ मार्शल ने रक्षा बलों और उद्योग के बीच विश्वास और खुले संवाद की आवश्यकता पर भी जोर दिया। उनका मानना है कि वायुसेना ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास कर रही है, लेकिन उद्योग को भी अपनी प्रतिबद्धताओं पर खरा उतरना होगा। यह दिखाता है कि समस्या केवल एक तरफा नहीं है। रक्षा उत्पादन में निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ाना महत्वपूर्ण है, लेकिन इसके लिए एक ऐसा वातावरण भी बनाना होगा जहां उद्योग को विश्वास हो कि उनके निवेश और प्रयासों का सम्मान किया जाएगा और उन्हें अनावश्यक बाधाओं का सामना नहीं करना पड़ेगा।
वर्तमान स्थिति ने वायुसेना को यह एहसास कराया है कि ‘आत्मनिर्भरता ही एकमात्र समाधान है’। लेकिन इस आत्मनिर्भरता को प्राप्त करने के लिए केवल इच्छाशक्ति ही काफी नहीं है, बल्कि एक मजबूत नीतिगत ढाँचा, कुशल प्रबंधन, तकनीकी विशेषज्ञता में निवेश और उद्योग के साथ गहरा सहयोग भी आवश्यक है।
निष्कर्ष: समय की मांग और भविष्य की चिंता
वायुसेना प्रमुख का बयान भारत की रक्षा तैयारियों के लिए एक गंभीर ‘वेक-अप कॉल’ है। यह न केवल वर्तमान में मौजूद सैन्य हार्डवेयर की कमी और अत्याधुनिक स्टील्थ विमानों के अभाव को उजागर करता है, बल्कि स्वदेशी उत्पादन और डिजाइन में व्याप्त संरचनात्मक समस्याओं पर भी प्रकाश डालता है। पहलगाम जैसी घटनाएं और क्षेत्रीय सुरक्षा चुनौतियां यह स्पष्ट करती हैं कि भारत अब रक्षा तैयारियों में किसी भी देरी का जोखिम नहीं उठा सकता।
‘आज की जरूरत’ और ‘भविष्य की तैयारी’ के बीच संतुलन बनाना अत्यंत महत्वपूर्ण है। यदि कोई उपकरण घरेलू स्तर पर निर्मित नहीं किया जा सकता है, तो उसे तत्काल बाहरी स्रोतों से प्राप्त किया जाना चाहिए ताकि आज की जरूरतों को पूरा किया जा सके, जैसा कि राहुल बेदी ने भी सुझाव दिया है। साथ ही, दीर्घकालिक समाधानों पर भी ध्यान केंद्रित करना होगा, जिसमें घरेलू रक्षा उद्योग को मजबूत करना, अनुसंधान और विकास में निवेश करना, और विशेष रूप से इंजन जैसी महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों में आत्मनिर्भरता हासिल करना शामिल है।
भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा एक मजाक नहीं है, और इसे नौकरशाही की अक्षमता, देरी और महत्वाकांक्षी लेकिन अधूरे कार्यक्रमों के कारण खतरे में नहीं डाला जा सकता। वायुसेना प्रमुख का बयान सिर्फ एक शिकायत नहीं है, बल्कि यह एक गंभीर चेतावनी है जिसे सरकार और देश को गंभीरता से लेना चाहिए। यह समय है कि भारत अपनी रक्षा तैयारियों को एक नई प्राथमिकता दे और ‘मेक इन इंडिया’ और ‘डिजाइन इन इंडिया’ के सपनों को वास्तविक जमीन पर उतारे, न कि उन्हें केवल कागजों और बयानों तक सीमित रखे। देश को एक मजबूत और सक्षम वायुसेना की आवश्यकता है, और इसके लिए सभी हितधारकों को मिलकर काम करना होगा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि भारतीय वायुसेना हमेशा अपनी पूरी क्षमता से देश की रक्षा कर सके।