
उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में स्थित विंध्याचल, धार्मिक आस्था का एक प्रमुख केंद्र माना जाता है। यह स्थान पवित्र गंगा नदी के किनारे बसा हुआ है और वाराणसी से लगभग 70 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मान्यता है कि यही वह स्थान है, जिसे देवी दुर्गा ने महिषासुर का वध करने के बाद अपने निवास के रूप में चुना था।
देवी दुर्गा की उपस्थिति का प्रतीक
विंध्याचल को देवी दुर्गा की विशेष कृपा प्राप्त है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, यह स्थान शक्ति की उपासना का केंद्र रहा है और यहां मां विंध्यवासिनी का मंदिर स्थापित है। नवरात्रों के दौरान यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है। पूरा शहर दीपों, फूलों और सजावट से जगमगा उठता है और वातावरण भक्तिमय हो जाता है।
महत्त्वपूर्ण मंदिर और आस्था के केंद्र
विंध्याचल क्षेत्र में स्थित अष्टभुजी देवी मंदिर और कालीखोह मंदिर भी विशेष महत्व रखते हैं। अष्टभुजी देवी मंदिर विंध्यवासिनी मंदिर से करीब 3 किलोमीटर दूर एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। यहां देवी के आठ भुजाओं वाले स्वरूप की पूजा की जाती है, जिन्हें मां दुर्गा का अवतार माना जाता है। यह स्थान प्राकृतिक सौंदर्य और आध्यात्मिक शांति से भरपूर है।
कालीखोह मंदिर में मां काली की मूर्ति स्थापित है, जिन्हें यहां मां काजला के नाम से पूजा जाता है। कहा जाता है कि यहां मां हर सच्चे श्रद्धालु की मनोकामना पूर्ण करती हैं। यह मंदिर मिर्जापुर शहर से लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और शक्तिपीठों में इसकी गिनती की जाती है।
पौराणिक संदर्भ और ऐतिहासिक महत्ता
विंध्याचल की महिमा का वर्णन ‘दुर्गा सप्तशती’ जैसे ग्रंथों में भी मिलता है। एक मान्यता के अनुसार, जिस रात भगवान कृष्ण का जन्म हुआ, उसी रात यशोदा के गर्भ से देवी दुर्गा ने जन्म लिया। जब कंस ने उन्हें मारने का प्रयास किया, तो वे एक अद्भुत रूप में प्रकट हुईं और आकाश में लीन हो गईं। इसी के बाद उन्होंने विंध्याचल को अपना स्थायी निवास बनाया।
अन्य दर्शनीय स्थल
यहां आने वाले श्रद्धालु अष्टभुजा मंदिर के निकट स्थित तीन पवित्र तालाबों – सीता कुंड, गेरुआ और मोतिया – के भी दर्शन कर सकते हैं। मान्यता है कि प्राचीन काल में राजा अपनी विजय की कामना से इन कुंडों के समीप देवी की पूजा करते थे।
नवरात्रों में होती है विशेष सजावट
नवरात्रों के दौरान विंध्याचल में विशेष उत्सव का माहौल होता है। मंदिरों में भव्य झांकियां सजाई जाती हैं, भजन-कीर्तन और यज्ञ होते हैं और भक्त जन देवी के दर्शन के लिए कतारों में खड़े रहते हैं। यह समय यहां का सबसे जीवंत और आध्यात्मिक रूप से प्रबल काल माना जाता है।